क्यों
खफा -खफा सा रहता है
क्यों
बुझा-बुझा सा रहता है
ऐ
दोस्त
जरा सर को झुकाकर
नजरों को
दिल के आइने पे डाल
हमारा ही न मिटने वाला
अमिट प्रतिबिम्ब दिखाई देगा
और
फिर नम आखों से
झरते असूंओं के मोतिओं में
ओस की
बूंद सा नजर आऊंगा
ऐ
दोस्त !
खफा -खफा सा रहता है
क्यों
बुझा-बुझा सा रहता है
ऐ
दोस्त
जरा सर को झुकाकर
नजरों को
दिल के आइने पे डाल
हमारा ही न मिटने वाला
अमिट प्रतिबिम्ब दिखाई देगा
और
फिर नम आखों से
झरते असूंओं के मोतिओं में
ओस की
बूंद सा नजर आऊंगा
ऐ
दोस्त !
2 comments:
DOSTI PAR BAHUT KHOOB LIKHA HAI...
Bahut sunder rachana.
aage bhi aisi rachnaye milegi isi ummed mai
Yatish
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