Mar 25, 2010

कैसे करूँ सिंगार


तबले की
ताल पर
मंजिरे की
आवाज़ पर
घुंघरूओं की
झनकार पर
होठों की
चंचल मुस्कान पर
रोम-रोम में
सिंगार का भाव लिए
सिख रही है
गोरी
सिंगार रस
पैरों की
थिरकन पर !

1 comment:

Yatish said...

बहुत रस भरी कविता