तबले की
ताल पर
मंजिरे की
आवाज़ पर
घुंघरूओं की
झनकार पर
होठों की
चंचल मुस्कान पर
रोम-रोम में
सिंगार का भाव लिए
सिख रही है
गोरी
सिंगार रस
पैरों की
थिरकन पर !
ताल पर
मंजिरे की
आवाज़ पर
घुंघरूओं की
झनकार पर
होठों की
चंचल मुस्कान पर
रोम-रोम में
सिंगार का भाव लिए
सिख रही है
गोरी
सिंगार रस
पैरों की
थिरकन पर !
1 comment:
बहुत रस भरी कविता
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