Mar 10, 2010

वसीयत


जब भी
काफिला
आंसुओं का
गुजरा है
कागज के पथ पर
बदल गया
हर एक कतरा
आंसू का
कुछ इस कदर
अल्फाजों में
कि
दे सकता है
नाम
कोई भी
कुछ भी
पर
हकीकत यह है कि
वसीयत है
मेरे अरमानों की !

2 comments:

Yatish said...

आपकी शैली बहुत ही अच्छी है

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।