क्या बताऊँ यार
क्यों
अक्सर खो जाता हूँ
मैं
गुम सुम सा होकर
मुख पे
शून्य का भाव लिए
अतीत में !
काफी अरसे से
कुछ कर
गुजरने की तमन्ना है
दिल में
कुछ कर गुजरना है
मुझे
अपने आप को
हिमालय के शिखर तक
ऊँचा उठाने के लिए
और
अपने नाम के शब्दों को
सुबह की
सूर्य की
किरणों से
जोड़ने के लिए
कभी -कभी
जब आता है ध्यान
कम है जिन्दगी
सफ़र है लम्बा
अब
कुछ कर गुजरना ही चाहिए
मुझको
पर
भटक जाता हूँ अक्सर
चलता हुआ
जीवन की
इस लम्बी सी
टेढ़ी मेढ़ी डगर पर
भटकने के साथ -साथ
अटक भी जाता हूँ
जब कभी
मजबूर हो जाता हूँ
फिर
मुख मोड़ कर्तव्य से
खो जाता हूँ
सपनों की दुनिया में
तब ओर भी
मायूस हो जाता हूँ
जब
सपनों के शहर में
खोकर भी
पाता हूँ
अपनी तमन्ना की परछाई का
अक्स
खंडहर का रूप लिए !
क्यों
अक्सर खो जाता हूँ
मैं
गुम सुम सा होकर
मुख पे
शून्य का भाव लिए
अतीत में !
काफी अरसे से
कुछ कर
गुजरने की तमन्ना है
दिल में
कुछ कर गुजरना है
मुझे
अपने आप को
हिमालय के शिखर तक
ऊँचा उठाने के लिए
और
अपने नाम के शब्दों को
सुबह की
सूर्य की
किरणों से
जोड़ने के लिए
कभी -कभी
जब आता है ध्यान
कम है जिन्दगी
सफ़र है लम्बा
अब
कुछ कर गुजरना ही चाहिए
मुझको
पर
भटक जाता हूँ अक्सर
चलता हुआ
जीवन की
इस लम्बी सी
टेढ़ी मेढ़ी डगर पर
भटकने के साथ -साथ
अटक भी जाता हूँ
जब कभी
मजबूर हो जाता हूँ
फिर
मुख मोड़ कर्तव्य से
खो जाता हूँ
सपनों की दुनिया में
तब ओर भी
मायूस हो जाता हूँ
जब
सपनों के शहर में
खोकर भी
पाता हूँ
अपनी तमन्ना की परछाई का
अक्स
खंडहर का रूप लिए !
2 comments:
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
क्या खूब पिरोया है ज़ज्बातो को आपने
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