Mar 5, 2010

हलचल


शोर मच गया
शोर मच गया
हर दिशां आसमां में
चाँद खो गया
चाँद खो गया
असमंजस में पड़ गया
छोटे से बड़ा
हर एक ग्रह
कहाँ गया
प्यारा सलौना सा
चाँद
आसमां से धरती तक
तारों ने बिछा दिया
अपना जाल
लग रहा है
सजी है आज धरती
एक
दुल्हन की तरह
और
ढूंढ़ रहे है
टिमटिमाते हुए
प्यारे
चाँद को
ढूंढते-ढूंढते
थक कर
जब बुझने से लगे
तभी
समुन्द्र की गहराई में से
लहरों की तरंगो पे
अठखेलिया करता
निकला चाँद
जिसमे
अक्सर चाँद
देखता था
अपने अक्स को
मुस्कराता हुआ बोला
निराश ना हो
ऐ मेरे प्यारे दोस्तों
ओर ना हो जाऊं
दूषित मैं
कुछ क्षण के लिए
गया था छुप
आते देख
अपनी तरफ
एक ओर राकेट को
और
सोचकर
गतिविधिया महाशक्तियों की
छेदकर
मानव की मानवता को
पर्यावरण की चादर को
कर दिया धराशाही
धरती को
नित्य
मिसाइल ओर परमाणू
परिक्षण से
लेकिन
मानो कह रहे हों
अब बारी तुम्हारी है
अ चन्द्रमा
परन्तु
मै तो
समय और सृष्टि की
नियम की कड़ियों से
जुडा हूँ
मुझे तो
हर हाल में
दूषित वातावरण में भी
ब्रहमाण्ड में रहकर
निरन्तर
सृष्टि के लिए
घूमते ही जाना है
अपनी ही धुरी पर
स्थिर गति से
घूमते ही जाना है !

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

दूषित वातावरण में भी
ब्रहमाण्ड में रहकर
निरन्तर
सृष्टि के लिए
घूमते ही जाना है
अपनी ही धुरी पर
स्थिर गति से
घूमते ही जाना है !

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।