May 12, 2010

इरादा


देखकर
इन्सान की
फितरत को
धरा
हो चुकी है
धराशायी
धरती का
सीना चीरकर
ज्वालामुखी भी
कर रहा है
प्रकट
रोष अपना
हिमालय भी
पिघलकर
अपने अस्तित्व
का
नामों निशां
मिटाने पर
है अमादा
क्या है
इन्सानी फितरत
का
इरादा ?

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

सु-मन (Suman Kapoor) said...

गम्भीर प्रश्न उठाती रचना सुन्दर.......