Oct 1, 2007

पथ निर्माण


बता रही है ए श्रमिक
तेरे श्रम की दास्तां
एक छोटी सी
बेजुबां खामोश चिमनी भी
तेरे ही खून का बनकर पसीना
जो झर रहा है
तेरी देह से झरना बनकर
निकल रहा है
मेरे मुख से वाष्प बनकर
फिर भी तू वचिंत है
जीवन की मधुर मुस्कान से
तन का दीया
मन की बाती बनाकर
प्रकाश फैला दिया कारखानों में
फिर भी,
तू है अन्धकार में !
देश का गौरव बढ रहा है
तेरे ही मेहनत के चमत्कार से
फिर भी तू वचिंत है
अपने ही अधिकारों से !
मानवता का संदेश
बापू का
मिलता नज़र आ रहा है
धूल में
हनन करके अधिकारों का
धनवानों ने
मजबूर कर दिया
अनशन,हड़ताल और तालाबंदी पर !
देखकर
इस विड़म्बना को
ख्याल आता है
मन में
अपने लक्ष्य के साथ-साथ
जब तक
आवागमन चलता रहे
सासों का
निर्माण करुँ
एक एसे पथ का
जो
मानवता के संदेश से
उजागर हो
और
चले इस पर जब
दो रंगी ये दुनिया
मिल मालिक हो या मजदूर
अमीर हो या गरीब
बाँट ले आपस में मिलकर
सुख-दुख की
लहरों का संगम !

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