Sep 20, 2007

गुलाम शब्द


बहुत समय बाद
हमारे एक मित्रगण मिले
हैलो-हैलो हूई
मैनें पूछा
आजकल आपका
बेटा क्या कर रहा है
बोले
सरकारी मुलाजिम है
मैनें कहा यु मीन
सर्विस
बोले हाँ
परन्तु तुम्हें पता है
सर्विस शब्द
आजकल
अपने आप से बहुत परेशान है
वो बोले कैसे
सूनो
बेचारे के एक-एक अक्षर को
जकड़ रखा है
टैक्स ने
मूझे तो उसका एक-एक अक्षर
टैक्स का गुलाम नज़र आता है
सर्विस शब्द के
'एस' अक्षर को
सर्विस टैक्स ने जकड़ रखा है
'इ' अक्षर को
एन्ट्रटेनमैन्ट टैक्स ने जकड़ रखा है
'आर' अक्षर को
रोड टैक्स ने जकड़ रखा है
'वी' अक्षर को
वैट टैक्स ने जकड़ रखा है
'आइ' अक्षर को
इन्कम टैक्स ने जकड़ रखा है
'सी' अक्षर को
कोर्रुप्शन टैक्स ने जकड़ रखा है
बिन खाते का
अनमोल रत्त्न
छुपा रुस्तम है ये
आखिर के
'इ' अक्षर को
एजुकेशन सैस टैक्स ने जकड़ रखा है
मित्रगण बोले
देखो ना
टैक्सों की है भरमार
फ़िर भी
हमें झेलनी पड़ती है
रोजाना की ज़रुरी सर्विसों की मार
जिसके हैं हम हकदार
बना रहता है हमेशा आकाल
ये कैसा दे डाला है
सरकार ने
अर्थव्यस्था को आकार
मेरी समझ से है बाहार
लगता है
सरकार लगी है
पैसा खींचने में
टैक्स के जरिए
करके खैंचु-खैंचु
और
हम ढो रहे हैं
इसका बोझा
गधे की तरह
करके ढेंचु-ढेंचु

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