Sep 10, 2007

बेबसी



पेड़ पर लटके हुए
अनेक आमों में से
तोड़ डाला
एक छोटा सा
प्यारा सा आम
मारकर
एक बड़ा सा पत्थर
उछलकर
जा अटका
वह आम
अनेक लताओं में से
पेड़ की एक छोटी
स्नेह सी लता पर
देखकर लगा मानो
स्नेह सी लता का
मुखड़ा बन
वह आम
अनेक लताओं के
झूरमूट से झांककर
मेरी बेबसी पर
हँस रहा हो !

2 comments:

Udan Tashtari said...

लिखते रहें, शुभकामनायें.

Shastri JC Philip said...

"वह आम
अनेक लताओं के झूरमूट से
मेरी बेबसी पर
हँस रहा हो !"

प्रिय शशि

छोटी सी कविता है, लेकिन उसमें छिपा मनोभावना सशक्त है -- शास्त्री जे सी फिलिप

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