दिन -प्रतिदिन
उमंगों से बनी नाव में
पतवार लिए सपनों की
विचारों के सागर में
बिखरी हुई जिन्दगी की ,
तह लगाकर
समेटे हुए
डूबता उभरता
निरंतर चल रहा हूँ
इस उम्मीद पर
कि
कभी तो,उमंगो से भरी
सपनों की लहर
जो मेरे विचारों के अनुकूल होगी
मेरी पतवार से टकराएगी
तब मैं
उस लहर के स्वागत में
उम्मीदों के दीप जलाकर
पथ मे पलकों को बिछाकर
ख़ुशी से छलकते हुए आंसुओं को
मोती बनाकर
उसको बिठा लूँगा,
नाव में
पर कब तक ,
जब तक मैं
विचारों की नींव से
उमंगों की सीमेंट से
सपनों की सजावट से
सागर से भी गहरा
मिलाजुला ,
महल ना बना लूँ ।
उमंगों से बनी नाव में
पतवार लिए सपनों की
विचारों के सागर में
बिखरी हुई जिन्दगी की ,
तह लगाकर
समेटे हुए
डूबता उभरता
निरंतर चल रहा हूँ
इस उम्मीद पर
कि
कभी तो,उमंगो से भरी
सपनों की लहर
जो मेरे विचारों के अनुकूल होगी
मेरी पतवार से टकराएगी
तब मैं
उस लहर के स्वागत में
उम्मीदों के दीप जलाकर
पथ मे पलकों को बिछाकर
ख़ुशी से छलकते हुए आंसुओं को
मोती बनाकर
उसको बिठा लूँगा,
नाव में
पर कब तक ,
जब तक मैं
विचारों की नींव से
उमंगों की सीमेंट से
सपनों की सजावट से
सागर से भी गहरा
मिलाजुला ,
महल ना बना लूँ ।
1 comment:
काफी गहराई है कविता में
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