Aug 18, 2007

उपयोग


दिमाग के किसी कोने मे
उभरता हुआ विचार
और कलम उतरी जो
लिखने को कागज़ पर
शब्द टूट-टूट कर बिखरने लगे,
बिखरते शब्दों का संतुलन बनाने में
सुबह से शाम होने लगी
इसी उलझन में,
संतुलन बिगाड़ने लगा दिमाग का,
कागज़ और कलम के बीच
होने लगा द्वंद
फिर
कागज़ , कागज़ ना रहा
कलम, कलम ना रही
ग़ुस्से में, जब
पटक दिया मेज पर कलम को
लगा, मानो
कलम से निकलते स्वर
मेज से टकरा कर, कह रहे हों,
पहले शब्दों का संग्रह करो
फिर मेरा उपयोग करो।

4 comments:

Yatish Jain said...

"मानो
कलम से निकलते स्वर
मेज से टकरा कर, कह रहे हों,
पहले शब्दों का संग्रह करो
फिर मेरा उपयोग करो।"
बहुत बढिया

Anonymous said...

वाह क्या बात कही है.

Anonymous said...

कविता मे संग्रह और उपयोग की बात बहुत अच्छे तरीके से कही गयी है जो मुझे बहुत भायी

Anonymous said...

जो सीधा उपयोग करने लगते है बगैर संग्रह के उनका क्या होगा