Aug 18, 2007

अक्ष


इस वैज्ञानिक युग
में आज का मानव
भाग रहा है;
भागता ही जा रहा है,
भागते-भागते
नंगे पाँव ही
हिमालय के शिखर पर
चढ़ जाना चाहता है
और
आसमाँ के बहुमूल्य रतन
चांद, सूरज व तारों को
समेट कर
एक ही मुट्ठी में
तारों से
घर जगमगाना चाहता है।
चांद की शीतलता से
अपने भटकते मन को
ठंडक पहुँचाना चाहता है,
सूरज को अलादीन के जिन्न की तरह
अपना सेवक बनाकर
दूसरो को भस्म कर देना चाहता है
और शायद वह
तब तक भागता ही रहेगा
जब तक आसमां में
चांद को अपना वाहन बनाकर
अपनी आंखों के पैमाने में
पृथ्वी की गति को क़ैद कर
उसकी धुरी का
अक्ष ना देख ले।

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