पैसे
ओ
पैसे
तुने
अपना लिया है
रूप ये कैसा
तेरी खनक में
दब के रह गई है
माँ-बाप
भाई-बहन
के
रिश्तों की
चीख
और
पुकार !
ओ
पैसे
तुने
अपना लिया है
रूप ये कैसा
तेरी खनक में
दब के रह गई है
माँ-बाप
भाई-बहन
के
रिश्तों की
चीख
और
पुकार !
मन मैं उभरते,बिखरते विचारों का; कागज और कलम के बीच द्वंद के पश्चात शब्दों का संग्रह है!
1 comment:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
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