Apr 6, 2010

रिश्ते


पैसे

पैसे
तुने
अपना लिया है
रूप ये कैसा
तेरी खनक में
दब के रह गई है
माँ-बाप
भाई-बहन
के
रिश्तों की
चीख
और
पुकार !

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है