Apr 5, 2010

आंगन


अन्धकार को
चीरती हुई
जब सुबह
सूर्य की
पहली किरण के साथ
मन के
आंगन में उतरती है
तब
मन के आंगन में
विचारों के
नये अंकुर फूटने लगते है
सपनों की
कलियाँ खिलने लगती है
प्रतिदिन
कुछ ऐसी ही
प्रतिक्रिया अनुभव होती है
परन्तु
साँझ होते-होते
सूर्य की
अन्तिम किरण के साथ-साथ
अंकुरों का
अपना कोई रूप नही रह जाता
सपनों की
कलियाँ
टूट-टूट कर
भिखरने लगती है
और
मन के आंगन के
गहन अन्धकार में
निराशा के
तारे
टिमटिमाने लगते है !

No comments: