Feb 25, 2010

शामे-गम


शामे-गम
अँधेरे के साए घिरने लगे ,
दिल का चिराग रोशन हुआ
दिमाग में कोंधी बिजली,
सादगी चाहिए
गुजारने को जिन्दगी,
उभरा चाँद उफक पर, तारे चमके,
मगर हम
तरसते रहे रोशनी के लिए !

शामे-गम
दिमाग भोझिल
दिल में उभरे यादों के अक्स
कुछ ऐसे,
जो भुलाये न भूले
शाम की गहराई
जाने कब
डूब चुकी थी अँधेरे के समन्दर में,
और मै सोचता ही रह गया !

शामे-गम
पड़ गई नजर बरगद की शाख पर
चिड़ियों की चचाहाहट
दिन भर की भटकन के बाद
रैन बसेरे में आ कर
कितने खुश है ये पंछी
सूरज जब निकलेगा ,
उड़ जाएँगे,फिर से
जिन्दगी की तलाश में !

आज की यह शाम ढलेगी
जिन्दगी का एक और दिन
समेट कर ले जाएगी !

शामे-गम
एक सितारा टूटा आसमान से
जैसे किसी की किस्मत का टूटा हो तारा,
बैठे ही बैठे झपकी सी आ गई
हाथ में कलम और मेज पर कागज थे,
और शायद मै कवि बन गया था !

खुली जब आँख,
आसमान लाल था !
मै हैरान था !
अब उफक की लाली थी
शामे- गम का कहीं पता ना था !

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