Apr 16, 2010

मंजिल


मंजिल तक पहुँचने के लिए
गिर-गिर कर
सम्भला हूँ अक्सर
सम्भल-सम्भल के
गिरा हूँ अक्सर
पता नही
आखों के सामने
गुजर गए
कितने ही काफिले
इस रहगुजर से
पर
मैं शायद
नही पहुँच सका हूँ
उस रहगुजर पर
अभी तक
जहाँ से
नजर आ सके
निशां
मंजिल का !

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